नक़्शा ऐसा है मिरे शमशाद का रंग जमता ही नहीं बहज़ाद का हौसले देखो कि मुर्ग़ान-ए-चमन ढूँढते फिरते हैं घर सय्याद का हर जफ़ा-ए-यार पर है सब्र-ओ-शुक्र है वज़ीफ़ा हरचे बादा-बाद का जिस की आबादी उजाड़ी आप ने नाम था दिल उस ख़राब-आबाद का इल्म पाइंदा है फ़ानी है हुनर नाम लिखने से रहा हद्दाद का फ़ैज़-ए-'नासिख़' 'रश्क' में क्यूँकर न हो कालबुद है ख़ाक-ए-फ़ैज़ाबाद का