मिरे नालों में हम-सर जोश-ए-दरिया हो नहीं सकता मिरा हम-गर्द सहरा में बगूला हो नहीं सकता दवा से हिज्र का बीमार अच्छा हो नहीं सकता दुआ से देखें हो सकता है कुछ या हो नहीं सकता वो बुलबुल हूँ कि फ़स्ल-ए-गुल में ग़ौग़ा हो नहीं सकता वो तूती हूँ कि आईने से गोया हो नहीं सकता गिराँ-जानी भी इस संजीदगी के साथ है मुझ में कि कोह-ए-कोहकन पासंग मेरा हो नहीं सकता छुपाओ शक्ल या तक़रीर पर बे-पर्दा कहता हूँ कि मुझ को तुम से तुम को मुझ से पर्दा हो नहीं सकता वो ज़र्रा हूँ कि ख़ुर्शीद-ए-क़यामत भी न चमकाए वो क़तरा हूँ समुंदर से भी दरिया हो नहीं सकता वो गुमरह हूँ कि ख़िज़्र आए हिदायत को तो गुमरह हो वो मुर्दा हूँ कि ईसा से भी ज़िंदा हो नहीं सकता वो वहशी हूँ कि मुझ से भागता है आहू-ए-वहशत वो मजनूँ हूँ कोई हम-पेशा मेरा हो नहीं सकता वो सर-गश्ता हूँ वहशत हर क़दम चकराती है मुझ से मिरे दौरे में कोई सर-ब-सहरा हो नहीं सकता क़ुबूल-ए-ख़ातिर-ओ-लुत्फ़-ए-सुख़न ऐ 'रश्क' और ही है नहीं तो शाइ'रों से और क्या क्या हो नहीं सकता