नशात-ए-दुनिया को ख़्वाब लिखना मसर्रतों को सराब लिखना जो हो सके तो ग़म-ओ-अलम की हिकायत-ए-पुर-किताब लिखना मैं सरगुज़िश्त-ए-हयात अपनी सहीफ़ा-ए-दिल पे लिख रहा हूँ तू अहद-ए-रफ़्ता के मौसमों को नए दिनों का अज़ाब लिखना मैं अपनी तहज़ीब के हवाले सिपुर्द-ए-क़िर्तास कर चुका हूँ तिरे मुक़द्दर में क्या नहीं है कोई दरख़्शंदा बाब लिखना हैं मेरी आँखों में ख़्वाब तेरे इसी लिए तो हैं ज़ख़्म गहरे किसी के बस में नहीं है शायद हिकायत-ए-इज़्तिराब लिखना मैं अपनी चश्म-ए-मुशाहिदा से जो देखता हूँ वही लिखूँगा ख़िलाफ़-ए-शान-ए-सुख़नवरी है क़सीदा-ए-आब-ओ-ताब लिखना ये दश्त-ए-इम्कान-ए-आरज़ू है यहीं ख़्याबान-ए-जुस्तुजू है यहाँ के मौसम की सर-कशी को अलामत-ए-इंक़लाब लिखना दयार-ए-एहसास के मकीनों के सर पे ताज-ए-सुख़नवरी है तो ऐसे ज़िंदा दिलों को 'अख़्तर' हमेशा इज़्ज़त-मआब लिखना