नशात-ए-रूह वज्ह-ए-गर्मी-ए-महफ़िल नहीं होता वो इक नग़्मा जो आवाज़-ए-शिकस्त-ए-दिल नहीं होता ब-जुज़ सहरा-नवर्दी और कुछ हासिल नहीं होता अगर दस्त-ए-जुनूँ पर्दा-कश-ए-महमिल नहीं होता हक़ीक़त-आश्ना रंग-ए-रुख़-ए-बातिल नहीं होता कि ग़ुंचा टूट कर भी हम-नवा-ए-दिल नहीं होता यक़ीनन है अभी ना-वाक़िफ़-ए-रस्म-ओ-रह-ए-मंज़िल वो ख़िज़्र-ए-राह जो गुम-कर्दा-ए-मंज़िल नहीं होता ज़रा तीर-ए-हदफ़-जू सोच कर अज़्म-ए-पर-अफ़्शानी कि फ़िरदौस-ए-दो-आलम ख़ूँ-बहा-ए-दिल नहीं होता तू बहर-ए-इश्क़ में दिल को हम-आग़ोश-ए-तलातुम रख ये वो मोती है जो पर्वर्दा-ए-साहिल नहीं होता