नसीब अपना ज़रा आज़मा के देखेंगे चराग़-ए-शौक़ हवा में जला के देखेंगे मचल मचल के कहाँ तक ये बर्क़ गिरती है चमन में फिर से नशेमन बना के देखेंगे फ़लक को ज़िद है कि हम को रुला के देखेगा हमें ये ज़िद है उसे मुस्कुरा के देखेंगे झुकाए बैठे हैं अब उन के दर पे सर अपना कभी तो वो हमें आँखें उठा के देखेंगे मिले सकूँ दिल-ए-मुज़्तर को वो जगह है कहाँ जहान-ए-ग़म से भी हम दूर जा के देखेंगे वो बच के जाएँगे कब तक नज़र से ऐ 'आफ़त' हम अपने दिल में अब उन को बसा के देखेंगे