सदा-ए-अहद-ए-वफ़ा को ज़वाल क्यूँ आया लब-ए-सुकूत पे हर्फ़-ए-सवाल क्यूँ आया किसे ख़बर कि चमन में ख़िज़ाँ की आमद पर ग़ुरूर-ए-शोला-ए-गुल को जलाल क्यूँ आया बुझा रहा था मैं अपने वजूद का ख़ुर्शीद तिरी निगाह में रंग-ए-मलाल क्यूँ आया शब-ए-फ़िराक़ ने देखी न थी मिरी सूरत शब-ए-फ़िराक़ को मेरा ख़याल क्यूँ आया चुभन है ज़ेहन में 'आसिफ़' कि इस अँधेरे में उफ़ुक़ के हाथ पे आख़िर हिलाल क्यूँ आया