नसीब अपने यहाँ तुम से बहरा-वर न हुए तमाम उम्र कभी मर्कज़-ए-नज़र न हुए तमाम उम्र हमारी कुछ इस तरह गुज़री तुम्हारी याद से इक लम्हा बे-ख़बर न हुए वो कौन से हैं मराहिल रह-ए-मोहब्बत में जुनून-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत से भी जो सर न हुए तुम्हारी यादों के नग़्मों की गूँज के सदक़े उदास दिल के हमारे कभी गुहर न हुए हमारे ख़्वाब सलामत तसव्वुरात ब-ख़ैर नज़र से दूर हमारी वो रात भर न हुए पहुँचते ले के उसे मंज़िल-ए-मोहब्बत पर नसीब ऐसे ज़माने को राहबर न हुए जो ज़ब्त-ए-ग़म के भी क़ाबिल न हो सके 'अख़्तर' वही तो अश्क के क़तरे हुए गुहर न हुए