न सिर्फ़ दिल ही गया दिल का मुद्दआ' भी गया वो क्या गए कभी मिलने का सिलसिला भी गया मैं उस को जाने से रोकूँ तो किस तरह रोकूँ मैं सोचती ही रही और वो चला भी गया वो और दिन थे कि जब ज़िंदगी में सब कुछ था अब उस के बा'द तो जीने का हौसला भी गया हुसूल-ए-ज़र की हवस उस को ले गई परदेस सुकून-ए-दिल की वो दौलत मगर लुटा भी गया हवा का झोंका जो शाख़ों को गुदगुदाता था वो हँसते फूलों को छू कर उन्हें रुला भी गया वो शहर-ए-संग में पहुँचा तो हो गया पत्थर अब उस से मिलने का पुर-कैफ़ सिलसिला भी गया कोई बताए तो 'नसरीन' हम कहाँ जाएँ उसे भी पा न सके हाथ से ख़ुदा भी गया