वफ़ूर-ए-शर्म से मैं मर रहा था ख़ुद अपना तज्ज़िया जब कर रहा था जो मेरे प्यार का दम भर रहा था मिरे हालात से वो डर रहा था ख़ुद अपनी ज़ात को धोके दिए थे गुमाँ ये है मोहब्बत कर रहा था उसे मंज़िल की हसरत खा गई है वो जिस के साथ इक रहबर रहा था ख़ुदा जाने मैं क्यों कर बच गया हूँ वो मुझ पर वार पैहम कर रहा था लबों पर खेलती थी मुस्कुराहट जुनून-ए-शौक़ आहें भर रहा था ख़िरद वाले मुझे अपना रहे थे अगरचे मैं जुनूँ-पर्वर रहा था