सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द वो ज़रा सा है ख़याल ऐ दिल कि फिर क्या इस के बअ'द दिल ब-मुश्किल आस्तान-ए-बुत के सज्दों से फिरा सर उठाया तो सही लेकिन बड़ी घिस घिस के बअ'द बे-ख़ुदी आई थी उन के बअ'द बज़्म-ए-नाज़ में फिर नहीं मालूम हम को कौन आया किस के बअ'द ख़ून-ए-दिल ही पर मसाइब काश हो जाते तमाम देखना ये है कि होना और क्या है इस के बअ'द ख़ुद को पहचाने तो इंसाँ क्यूँ रहे पाबंद-ए-ग़ैर ये कमाल-ए-बे-हयाई है ज़वाल-ए-हिस के बअ'द कोई जाता है तो जाए किस को पर्वा है यहाँ बज़्म-ए-आलम ये कहो सूनी हुई है किस के बअ'द खो दिया शोहरत ने अपनी शेर-ख़्वानी का मज़ा दाद मिल जाती है 'नातिक़' हर रतब-याबिस के बअ'द