नौहागरों में दीदा-ए-तर भी उसी का था मुझ पर ये ज़ुल्म बार-ए-दिगर भी उसी का था देखा मुझे तो तर्क-ए-तअल्लुक़ के बावजूद वो मुस्कुरा दिया ये हुनर भी उसी का था आँखें कुशाद-ओ-बस्त से बदनाम हो गईं सूरज उसी का ख़्वाब-ए-सहर भी उसी का था ख़ंजर-दर-आस्तीं ही मिला जब कभी मिला वो तेग़ खींचता तो ये सर भी उसी का था निश्तर चुभे हुए थे रग-ए-जाँ के आस-पास वो चारागर था और मुझे डर भी उसी का था महफ़िल में कल 'फ़राज़' ही शायद था लब-कुशा मक़्तल में आज कासा-ए-सर भी उसी का था