नवाह-ए-वुसअत-ए-मैदाँ में हैरानी बहुत है दिलों में इस ख़राबी से परेशानी बहुत है कहाँ से है कहाँ तक है ख़बर इस की नहीं मिलती ये दुनिया अपने फैलाव में अन-जानी बहुत है बड़ी मुश्किल से ये जाना कि हिज्र-ए-यार में रहना बहुत मुश्किल है पर आख़िर में आसानी बहुत है बसर जितनी हुई बेकार ओ बे-मंज़िल ज़माने में मुझे इस ज़िंदगानी पर पशेमानी बहुत है निकल आते हैं रस्ते ख़ुद-ब-ख़ुद जब कुछ न होता हो कि मुश्किल में हमें ख़्वाबों की अर्ज़ानी बहुत है बहुत रौनक़ है बाज़ारों में गलियों और मोहल्लों में पर इस रौनक़ से शहर-ए-दिल में वीरानी बहुत है