मेरे आ'साब पे छाती ही चली जाती है कोई सूरत मुझे भाती ही चली जाती है साँस दर साँस मुसाफ़िर हैं ग़ुबार-आलूदा ज़िंदगी ख़ाक उड़ाती ही चली जाती है कौन करता है समाअ'त के तक़ाज़े पूरे ख़ामुशी शोर मचाती ही चली जाती है देख अश्कों का समुंदर है मिरे चारों तरफ़ मौज-ए-ग़म मुझ को बहाती ही चली जाती है तीरगी है कि भटकती है तिरी गलियों में रौशनी राह दिखाती ही चली जाती है मेरे सब ज़ख़्म हैं नक़्क़ाद मिरे शे'रों के शाइरी हश्र उठाती ही चली जाती है रोकने वाले मुझे रोकते रहते हैं 'फ़िदा' शाइरी आगे बढ़ाती ही चली जाती है