नया शगूफ़ा इशारा-ए-यार पर खिला है गुलाब अब के चमन की दीवार पर खिला है ये कैसी अंगड़ाई ली है एहसास-ए-ज़िंदगी ने मसीह का रंग रु-ए-बीमार पर खिला है नफ़ी का जादू जगा रही हैं तिलिस्मी आँखें वो हर्फ़-ए-मतलब फ़सील-ए-इज़हार पर खिला है किताब-ए-रुख़ है हिजाब-ए-तक़्दीस-ए-हुस्न-ए-जानाँ ये राज़ कैसा मज़ाक़-ए-दीदार पर खिला है बहार-आगीं हयात-अफ़रोज़ फूल बन कर लहू का छींटा क़बा-ए-ईसार पर खिला है मुझे बनाया गया था ख़ामोशियों का पैकर ये ग़ुंचा-ए-लब किसी के इसरार पर खिला है 'सबा' का ज़ौक़-ए-सुख़न निगार-ए-ग़ज़ल के हक़ में वो काला तिल है जो गोरे रुख़्सार पर खिला है