नगर यक़ीन का शहर-ए-गुमाँ से आगे है जहाँ हमारा तुम्हारे जहाँ से आगे है शिकम में भूक परों में हवाएँ रख ताइर बहुत सा रिज़्क़ अभी आसमाँ से आगे है मैं भूल बैठा हूँ अपनी तलाश में ये भी मिरा वजूद मिरे दश्त-ए-जाँ से आगे है तुझे तलाश-ए-ख़िज़र है तू आ यहाँ से गुज़र जहान-ए-ख़िज़्र मिरे ख़ाक-दाँ से आगे है हो जिस को दश्त में हासिल क़राबत-ए-ज़ैग़म वही ग़ज़ाल हुजूम-ए-सगाँ से आगे है मुझे भी लूटा गया है बड़े सलीक़े से मिरा भी ज़िक्र तिरी दास्ताँ से आगे है ज़मीन पे हूँ मगर हूँ फ़लक-नवर्द ऐसा कि जिस का पाँव सर-ए-कहकशाँ से आगे है इसी लिए तो तआ'क़ुब में है चराग़-ए-फ़लक कि मेरा साया मिरे कारवाँ से आगे है यहाँ जो ख़ुद को समझता नहीं हदफ़ 'आदिल' उसी का तीर गिरफ़्त-ए-कमाँ से आगे है