नए सफ़र की लज़्ज़तों से जिस्म ओ जाँ को सर करो सफ़र में होंगी बरकतें सफ़र करो सफ़र करो उदास रात के गुदाज़ जिस्म को टटोल कर किसी की ज़ुल्फ़-ए-साया-दार की गिरह में घर करो जो आँख हो तो देख तू सराब ही सराब है न ए'तिबार तिश्नगी में मौज-ए-आब पर करो पुरानी आस्तीन से पुराने बुत करो रिहा नई ज़मीन पर नए ख़ुदा को मो'तबर करो जमाल-ए-यार से करो कभी नज़र को पाक भी ख़याल-ए-यार से कभी कभी शबें सहर करो