नाज़ ग़फ़लत के उठाता हूँ मैं हुश्यारी में आलम-ए-ख़्वाब है गोया मिरी बेदारी में कौन आता है इलाही कि पा-ए-इस्तिक़बाल हसरतें देर से मसरूफ़ हैं तय्यारी में क्या बना लेंगे शब-ए-हिज्र बिगड़ कर नाले दर्द उठ बैठे अगर दिल की तरफ़-दारी में होश उड़ जाते हैं पाबंद-ए-क़फ़स कर के मुझे है मिरे साथ रिहाई भी गिरफ़्तारी में ले लिया दिल मिरा ग़ुस्सा से झिड़क कर उस ने दिलरुबाई भी है ज़ालिम की दिल-आज़ारी में जाग कर भी रहे पाबंद-ए-तग़ाफ़ुल बरसों क्या तमाशा है कि सोते रहे बेदारी में क्यों न नाकामी-ए-क़िस्मत को दुआ दूँ 'तौफ़ीक़' बरसों पाला है मुझे दामन-ए-ग़म-ख़्वारी में