नज़र में ख़िज़्र कोई है न इब्न-ए-मरियम है अजब बला में गिरफ़्तार इब्न-ए-आदम है उलझ उलझ के लिपटता गया यहाँ इंसाँ बिसात-ए-दहर नहीं दाम-ए-ज़ुल्फ़ पुर-ख़म है हमारा आप का जीना भी है कोई जीना जो दिल है चाक है जो आँख है वो पुर-नम है मिज़ाज दैर-ओ-हरम कल बताऊँगा तुम को मिसाल-ए-गेसू-ए-पुर-पेच आज बरहम है न दिल-दही है न है दिल-बरी कहीं 'माहिर' ज़माना दे मुझे आज़ार जो भी वो कम है