क़ाबिल-ए-क़द्र तो है वा दर-ए-ज़िंदाँ होना इस पे तुर्रा तिरी ज़ुल्फ़ों का परेशाँ होना सात पर्दों में छुपा जौहर-ए-ताबान-ए-जमाल इस पे भी सामने आइने का हैराँ होना कितने ऐवान-ए-फ़लक-बाम ज़मीं-बोस हुए क्या क़यामत है दिल-ए-ज़ार का नालाँ होना हम ने माना कि ये है आब-ए-बक़ा का मम्बा' पहले साबित भी तो हो चश्मा-ए-हैवाँ होना लाज रखनी है यहाँ रहने की जाने वालो लाला-ओ-गुल में कभी कुछ तो नुमायाँ होना लाया ईमान कि 'माहिर' भी है बे-शक शाइ'र आज ही देखा है काफ़िर का मुसलमाँ होना