नज़र में ख़ुद को बसा दो तो कोई बात बने वफ़ा के फूल खिला दो तो कोई बात बने नज़ारे प्यार के क़िस्से सुना रहे हैं अभी तुम अपना चेहरा दिखा दो तो कोई बात बने अंधेरा बढ़ता ही जाता है दिल के रस्तों में वफ़ा के दीप जला दो तो कोई बात बने हज़ार बातें बना कर जो दिल लुभाते हो नज़र नज़र से मिला दो तो कोई बात बने कभी तो तुम भी मिरे घर में आ के ऐ जानम नक़ाब रुख़ से हटा दो तो कोई बात बने कभी तो ख़्वाब में आ के क़रीब इस दिल के तराना प्यार का गा दो तो कोई बात बने ग़ज़ल का नाम जिसे दे दिया है ऐ 'आदिल' तुम उस का नाम बता दो तो कोई बात बने