नज़र में वो मस्त-ए-शबाब आ गया कोई हासिल-ए-इंतिख़ाब आ गया जिसे देख कर लोग हँसने लगे इक ऐसा भी ख़ाना-ख़राब आ गया सबा आ रही है महकती हुई मिरे ख़त का शायद जवाब आ गया यकायक नज़र उस ने क्या फेर ली कोई मुझ पे जैसे अज़ाब आ गया चलो राह के पेच-ओ-ख़म देख कर ख़ुदा रक्खे अहद-ए-शबाब आ गया