नज़र ने ज़ाविया गुम कर दिया है ख़ुद अपना आइना गुम कर दिया है अचानक एक तिनके ने लपक कर भँवर का दायरा गुम कर दिया है वरक़ लहजा बदलते ही किसी ने जमाल-ए-वाक़िआ' गुम कर दिया है परिंदे उड़ गए सारे शजर से ज़मीं ने ज़ाइक़ा गुम कर दिया है नुमूद-ए-ज़ात पर इतरा रहा था हवा ने बुलबुला गुम कर दिया है फ़क़त आँसू बहाना है मुक़द्दर पयाम-ए-सानेहा गुम कर दिया है लबों की बे-सबब जुंबिश ने 'शाहीं' हक़ीक़ी हादिसा गुम कर दिया है