नज़ारा कर बुत-ए-पुर-फ़न हमारा कि तन दाग़ों से है गुलशन हमारा है इश्क़-ए-ज़ुल्फ़ में ख़ाना-बदोशी कहें क्या है कहाँ मस्कन हमारा जो रोए याद-ए-दंदान-ए-सनम में तो पुर-गौहर हुआ दामन हमारा बुतों की सख़्तियाँ सहने को या-रब बनाया क्यों न दिल आहन हमारा हमारी ये वसिय्यत है दम-ए-मर्ग कि कू-ए-यार हो मदफ़न हमारा जवानी में मोहब्बत की लगी आग जला किस वक़्त में ख़िरमन हमारा ज़मीन-ओ-आसमाँ थर्रा रहे हैं सदा-ए-सूर है शेवन हमारा इक आहू-चश्म की उल्फ़त में 'साबिर' बयाबाँ हो गया मस्कन हमारा