न मुझे रोक सका आप का दरबाँ कोई खींचता था कोई दामन तो गरेबाँ कोई सुनने वाला नहीं जब हाल-ए-परेशाँ कोई तो कहे किस लिए अपना ग़म-ए-पिन्हाँ कोई हुस्न पर अपने सर-ए-बज़्म है नाज़ाँ कोई सूरत-ए-आइना है देख के हैराँ कोई आतिश-ए-हुस्न का रुख़ पर ये धुआँ है जिस को ख़त समझता है कोई ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ कोई शाम से ये जो सँवरते हैं तुम्हारे गेसू जम्अ-ख़ातिर कोई होगा तो परेशाँ कोई देख कर आलम-ए-वहशत में मिरी हैरानी कोई ख़ंदाँ है तो अंगुश्त-ब-दंदाँ कोई सू-ए-दर आज ये क्यों आँख लगी है 'साबिर' मुंतज़िर किस के हो क्या आएगा मेहमाँ कोई