नीम पागल तो मैं हूँ तुम मुझे सारा कर दो आँख बिफरा हुआ दरिया है किनारा कर दो इक ज़ईफ़ा है घना दश्त है इक झोंपड़ी है एक बेटे ही को बुढ़िया का सहारा कर दो कोई तब्दीली न आए अगर अतवार में तो सारे बच्चों को नसीहत ही दोबारा कर दो चाँद हर हाल में सरगोशी करेगा तुझ से छत से तुम उस को अगर एक इशारा कर दो मैं ने ता'वीज़-ए-मोहब्बत भी लिए दम भी किया काश कोई तो मिरी आँख का तारा कर दो मैं ने भी ताज-महल एक बना रक्खा है आ के इक बार 'सहर' आप नज़ारा कर दो