आशिक़-ए-ज़ार हूँ जुज़ इश्क़ मुझे काम नहीं तालिब-ए-कुफ़्र नहीं ताबे-ए-इस्लाम नहीं ग़म नहीं कुछ भी ख़राबी से है हम मस्तों को गर्दिश-ए-जाम है ये गर्दिश-ए-अय्याम नहीं क़त्ल-ए-आशिक़ के लिए एक अदा बस है तिरी बिस्मिल-ए-इश्क़ को कुछ हाजत-ए-समसाम नहीं क्या हुआ अब्र भी है मय भी है साग़र भी है है ये सब हेच अगर साक़ी-ए-गुलफ़ाम नहीं देख कर मुझ को तुझे क्यूँ है तहय्युर नासेह मशरब-ए-इश्क़ है ये मज़हब-ए-इस्लाम नहीं ख़ाना-ए-नाज़ है वो बल्कि चराग़-ए-मुर्दा दिल के आईने में गर रू-ए-दिल-आराम नहीं इश्क़-ए-ख़ादिम से हुआ है दिल-ए-'आसिम' मामूर इस लिए दीन-ओ-दुनिया से उसे काम नहीं