नेक-ओ-बद की जिसे ख़बर ही नहीं शर है कम-बख़्त वो बशर ही नहीं वो हैं किस हाल में ख़बर ही नहीं सर भी नीचा है इक नज़र ही नहीं हाथ ख़ाली है माल-ओ-ज़र ही नहीं क्या उड़ें जबकि बाल-ओ-पर ही नहीं मय की बाबत ख़याल कर वाइज़ इस में नफ़ए भी हैं ज़रर ही नहीं शर्म से तेरे रू-ए-रौशन के शम्स भी ज़र्द है क़मर ही नहीं जिस के बाइ'स है ज़िंदगी बे-लुत्फ़ लुत्फ़ ये है उसे ख़बर ही नहीं राह हर दिल को होती है दिल से मेरे दिल की उन्हें ख़बर ही नहीं यार तो क़त्ल-ए-आम कर डाले तेग़ बाँधे कहाँ कमर ही नहीं ज़ब्त की निस्बत आप का है ख़याल मैं हूँ आशिक़ मिरे जिगर ही नहीं मेरे सीने को चीर कर देखो दिल भी रोता है चश्म-ए-तर ही नहीं आसमाँ लाख बार दुश्मन हो क्या हो बर्बाद मेरे घर ही नहीं कौन कहता है मुझ को सौदाई एक मुद्दत से मेरे सर ही नहीं हम क़यामत से भी हुए बे-फ़िक्र शब-ए-हिज्राँ की जब सहर ही नहीं पाँव फैलाए मस्त होते हैं फ़ुक़रा क्यूँकि माल-ओ-ज़र ही नहीं वो तो मुझ को जलाए जाएँगे बा'द मुर्दन भी उम्र भर ही नहीं बा'द मुर्दन है हश्र का खटका मेरी जाँ फ़िक्र से मफ़र ही नहीं मुर्ग़ बे-वज्ह चीख़े जाता है ये न बोले तो जानवर ही नहीं ज़ुल्म पर अब है आसमाँ नादिम सर भी नीचा है इक नज़र ही नहीं तौबा तौबा हज़ार-हा शर्तें क्या बताऊँ अगर मगर ही नहीं फिरते हो सैकड़ों नदीदों में तुम को ख़ौफ़-ए-नज़र गुज़र ही नहीं आदमी आदमी है इज़्ज़त से आब जिस में न हो गुहर ही नहीं कम है ये ज़ाद-ए-राह ऐ 'परवीं' तुम को अंदाज़ा-ए-सफ़र ही नहीं