निभेगी किस तरह दिल सोचता है अजब लड़की है जब देखो ख़फ़ा है ब-ज़ाहिर है उसे भी प्यार वैसे दिलों के भेद से वाक़िफ़ ख़ुदा है ये तन्हाई का काला सर्द पत्थर इसी से उम्र-भर सर फोड़ना है मगर इक बात दोनों जानते हैं न कुछ उस ने न कुछ हम ने कहा है नहीं मुमकिन अगर साथ उम्र-भर का ये पल-दो-पल का मिलना क्या बुरा है घने जंगल में जैसे शाम उतरे कोई यूँ 'जाफ़री' याद आ रहा है