निगाह-ए-दिल से जो गुज़रा तो फिर सितारा हुआ वो चाँद मेरे सुख़न का जो इस्तिआ'रा हुआ तुम्हारे दीद से पहले वो एक मंज़र था तुम्हारी आँख ने देखा तो इक नज़ारा हुआ ज़मीन-ए-दिल पे सुख़न का नुज़ूल होता रहा किसी नज़र के हुनर का जूँही इशारा हुआ सुख़न ये शब का गुज़ारी हुई वो सुब्ह-ए-विसाल हयात-ए-हुस्न का इतना ही गोश्वारा हुआ वो रंग-साज़ रहा ग़र्क़ फ़िक्र-ए-रंगीं में वो हुस्न-ए-ज़ीस्त में इक दिल-नशीं इदारा हुआ वो यूँ तुलूअ' हुआ ले के अक्स-ए-ताबिंदा कि जैसे झील में इक चाँद हो उतारा हुआ वो शाहज़ादा मोहब्बत के पैरहन में ढला वो ख़ुद-सरी-ओ-अना-ओ-ग़ुरूर हारा हुआ