निगह-ए-लुत्फ़-ओ-इनायत का सिला ले जाओ दिल से निकली है जो मेरे वो दुआ ले जाओ लब पे नारा है मोहब्बत का मगर दिल में फ़रेब मुझ को इस बज़्म से लिल्लाह उठा ले जाओ इश्क़ को ज़िंदा-ए-जावेद बनाना है अगर कू-ए-महबूब से जीने की अदा ले जाओ भूल कर भी सितम-ए-यार का शिकवा न करो मुझ से ऐ बुल-हवसो दर्स-ए-वफ़ा ले जाओ पाकबाज़ान-ए-हरम और तू मयख़ाने में ग़ैर मुमकिन है कि दामन को बचा ले जाओ मुस्कुराना है जो गुलज़ार की दिल-कश कलियो लब-ए-जानाँ से तबस्सुम की अदा ले जाओ ऐ हवाओ न तड़प जाएँ वो सुनते ही कहीं मेरे टूटे हुए दिल की न सदा ले जाओ 'शाइर' अफ़्सोस है मय पी के बहक जाते हो मय-कदे से कहीं तुम भी न निकाले जाओ