निगाह-ए-नाज़ को ख़ुद-बीं बना के आया हूँ ख़ुद अपनी राह में काँटे बिछा के आया हूँ जहाँ पे होता है लुत्फ़-ओ-करम से दिल का शिकार मुक़द्दर अपना वहाँ आज़मा के आया हूँ सितम की पूरी कहानी फ़िराक़ का क़िस्सा लब-ए-ख़मोश से उन को सुना के आया हूँ न आस तोड़ कि ज़ालिम मैं तेरे क़दमों में तमाम दौलत-ए-दुनिया लुटा के आया हूँ जहाँ पे लुटती है दुनिया-ए-आरज़ू 'साहिर' वहाँ मैं जान की बाज़ी लगा के आया हूँ