निगह का तीर तुम मारो तो दिल का मुद्दआ' निकले तुम्हारा नाम हो जाए हमारा हौसला निकले सितम पर हो सितम तेरा जफ़ा पर हो जफ़ा तेरी मगर मेरी दुआ ये है तिरे हक़ में दुआ निकले तिरे तीर-ए-निगाह पर दिल भी सदक़े जान भी क़ुर्बां तिरा अंदाज़ मेरे हक़ में पैग़ाम-ए-क़ज़ा निकले न थी पहले शनासाई मगर आँखों के मिलते ही हमारे दिल को ले कर आप तो अब दिलरुबा निकले यही अरमान दिल का है यही हसरत है मुद्दत से तुम्हारे पा-ए-नाज़ुक पर मिरी जाँ दम मिरा निकले बहुत हँसते थे हम 'संजर' कि तुम शैदा बुतों के हो मगर ज़ाहिर में देखा तुम को तो तुम बा-ख़ुदा निकले