पहले था कोई कि थी जिस से मोहब्बत मुझ को ब-ख़ुदा अब तो किसी से नहीं उल्फ़त मुझ को ख़ूब-रू अब तो नज़र में कोई जचता ही नहीं भा गई जब से तिरी साँवली सूरत मुझ को वा'दा आने का है कल देखो ज़रा आ जाना वर्ना बे-चैन करेगी शब-ए-फ़ुर्क़त मुझ को ग़ैर से आठ पहर आप मिला करते हैं है ये अंधेर दिखाते नहीं सूरत मुझ को जब से तारीफ़ मैं करता हूँ पयम्बर 'संजर' नज़र आने लगी इन आँखों से जन्नत मुझ को