निगाह-ओ-दिल को जलाने का हौसला तो करो उठा के पर्दे हक़ीक़त का सामना तो करो बिसात-ए-रक़्स पे नग़्मों से खेलने वालो किसी ग़रीब की फ़रियाद भी सुना तो करो किसी के ऐब तुम्हें फिर नज़र न आएँगे ख़ुद अपने आप को तफ़्सील से पढ़ा तो करो वो ज़िंदगी के लिए हो कि हो अजल के लिए हमारे हक़ में कभी तुम कोई दुआ तो करो दिखाई देंगे हमें हम तुम्हारे चेहरे में नज़र के सामने इक बार आइना तो करो मजाज़ ख़ुद ही हक़ीक़त का रूप ढालेगा ये शर्त है कि हक़-ए-बंदगी अदा तो करो हमारी आँख में सूरज को ढूँडने वालो तुम अपने दिल को उजालों से आश्ना तो करो मैं काएनात की हर शय को छोड़ सकता हूँ तुम अपने दर्द-ए-मोहब्बत से आश्ना तो करो बहुत तवील सही शब तुम्हारी ज़ुल्फ़ों की 'सहर' को इन के उजालों से आश्ना तो करो