शब-ए-फ़िराक़ को यूँ जगमगा रहा हूँ मैं बुझा के शम्अ को अब दिल जला रहा हूँ ख़याल-ए-यार को दिल में बसा रहा हूँ मैं तसव्वुरात की दुनिया सजा रहा हूँ मैं ग़म-ए-हयात ग़म-ए-दिल का लुत्फ़ पाने को अजल के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं अजीब हाल है शाख़ों से फूल झड़ते हैं भरी बहार में आँसू बहा रहा हूँ मैं ये राज़ फ़ाश न हो जाए आँसूओं से कहीं तुम्हारे ग़म को तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं न लब पे कोई शिकायत न दिल है फ़रियादी तुम्हारी बज़्म से ख़ामोश जा रहा हूँ मैं उठाओ साज़ मिलाओ दिलों के तारों को नई हयात के नग़्मे सुना रहा हूँ मैं विसाल-ओ-हिज्र का आलम अजीब आलम है फ़साना शब का 'सहर' को सुना हूँ मैं