निगाह से भी गए अर्ज़-ए-हाल से भी गए वो बरहमी है कि हम बोल-चाल से भी गए वो लफ़्ज़ जो मैं तिरी आरज़ू में लिखती थी वो नक़्श तो मिरी लौह-ए-ख़याल से भी गए मिसाल देती थी दुनिया भी जिस रिफ़ाक़त की वो फ़ासले हैं कि अब इस मिसाल से भी गए वो ताइरान-ए-मोहब्बत जिन्हें फ़लक न मिला उड़ान भर न सके और डाल से भी गए वो हर्फ़-ए-मरहम-ए-हर-ज़ख़्म याद थे 'अफ़रोज़' अब उन के बा'द तो हम इंदिमाल से भी गए