फिर तिरा शहर तिरी राहगुज़र हो कि न हो और हो भी तो मुझे शौक़-ए-सफ़र हो कि न हो हो न हो फिर से रग-ओ-पय में शरारों का गुमाँ फिर कभी दोश पे मेरे तिरा सर हो कि न हो माँग लूँ तेरे हवाले से तो शायद मिल जाए क्या ख़बर सिर्फ़ दुआओं में असर हो कि न हो ना-उमीदी के ये शब-ज़ाद डराते हैं मुझे तेरे आने से मुनव्वर मिरा घर हो कि न हो मुझ से भूला न गया उन के लबों का वो खिंचाव याद उन को भी मिरा दीदा-ए-तर हो कि न हो अब भी आ जाओ कोई देर खुली हैं आँखें क्या ख़बर फिर कभी दीवार में दर हो कि न हो माँ के आँचल के तले बैठ लो कुछ देर ऐ 'ताज' क्या ख़बर आगे ये साया ये शजर हो कि न हो