निगह से चश्म से नाज़-ओ-अदा से ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे हर बला से किसी की बेवफ़ाई से मुझे क्या मैं अपने काम रखता हूँ वफ़ा से बहुत माँगीं दुआएँ हाथ उठा कर न निकला काम कुछ आख़िर दुआ से मुझे डर है कहीं रुस्वा न हो तू जो मैं रुस्वा हुआ तेरी बला से 'हसन' देता है तू क्यूँ जी बुतों पर मिला देंगे तुझे क्या ये ख़ुदा से