साए घटते जाते हैं By Ghazal << निगह से चश्म से नाज़-ओ-अद... यही सफ़र की तमन्ना यही थक... >> साए घटते जाते हैं जंगल कटते जाते हैं कोई सख़्त वज़ीफ़ा है जो हम रटते जाते हैं सूरज के आसार हैं देखो बादल छटते जाते हैं आस पास के सारे मंज़र पीछे हटते जाते हैं देखो 'मुनीर' बहार में गुलशन रंग से अटते जाते हैं Share on: