निगाह यूँही न बस रहगुज़र से वापस आ मुरस्सा हो के हदों की ख़बर से वापस आ तू मुझ से हट के कहीं और क्यों रहे आख़िर निकल के मंज़र-ए-दीवार-ओ-दर से वापस आ अगर हैं देखना अपनी तजल्लियाँ मुझ में उतर के नूर का दरिया क़मर से वापस आ फ़लक पे बैठा हुआ जाने कौन है मुझ से ये कह रहा है कि तू बहर-ओ-बर से वापस आ सुकून-ओ-अम्न का साहिल है मुंतज़िर तेरा मिरी हयात की कश्ती भँवर से वापस आ तू उस को भीड़ में हर चंद पा नहीं सकता ख़ुदा मिलेगा ख़ुदाओं के घर से वापस आ वफ़ा किताब में पढ़ ले वफ़ा के ख़्वाब न देख तू 'एहतिशाम' ख़याली सफ़र से वापस आ