तवाना हूँ दिल-ए-रंजूर की सौगंद क्यों खाऊँ मैं जब मुख़्तार हूँ मजबूर की सौगंद क्यों खाऊँ मुझे अर्श-ए-बरीं के जल्वा-ए-दाइम से निस्बत है कोई वाइ'ज़ हूँ मैं भी हूर की सौगंद क्यों खाऊँ मिरा तूर-ए-तजल्ली रात दिन है मेरे पहलू में नहीं जब आग लेना तूर की सौगंद क्यों खाऊँ मिरा हर ना-चकीदा अश्क का क़तरा है बे-साहिल मैं तूफ़ान-ए-बला तन्नूर की सौगंद क्यों खाऊँ हक़ीक़त में मिरी ख़ामोशियाँ पर्दा हैं महशर का हूँ ख़ुर्शीद-ए-क़यामत सूर की सौगंद क्यों खाऊँ अनल-हक़ की बजाए मैं अ'लल-हक़ का हूँ आवाज़ा पड़ी है क्या मुझे मंसूर की सौगंद क्यों खाऊँ कुलाह-ए-फ़क़्र जब मैं ने अज़ल से ओढ़ रक्खी है 'अमीं' तू ही बता फ़ग़्फ़ूर की सौगंद क्यों खाऊँ