निगाह-ए-फ़क़्र ही शान-ए-सिकंदरी जाने वही है शाह जो राज़-ए-क़लंदरी जाने हवा बिखेरती मुझ को है गर्द की सूरत जहाँ में कौन है जो मेरी बे-घरी जाने बस एक तेरे सिवा बे-ख़बर नहीं कोई हमारा हाल तो रस्ते की कंकरी जाने तिरी अदाओं की पहचान ख़ूब है मुझ को तिरे करम की कोई क्या सितमगरी जाने मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ की बस्ती है ज़माना क्या मिरा तर्ज़-ए-क़लंदरी जाने तू अर्श-ओ-फ़र्श पे आँखें टिकाए रहता है कहाँ से तेरी तरह कोई मुख़बिरी जाने