निकल कर ज़ब्त की हद से फ़ुग़ाँ तक बात जा पहूँची ख़बर भी है दिल-ए-नादाँ कहाँ तक बात जा पहूँची मैं इज़हार-ए-मोहब्बत कर के उन से ख़ुश नहीं लेकिन चलो अच्छा हुआ गोश-ए-गिराँ तक जा पहुँची न हो सामान-ए-सैराबी मगर ये फ़ख़्र क्या कम है हमारी प्यास की पीर-ए-मुग़ाँ तक बात जा पहुँची दिल-ए-बद-ज़न की ये मुझ पर करम-फ़रमाइयाँ तौबा जहाँ तक मैं नहीं पहूँचा वहाँ तक बात जा पहूँची निकल आए सितारे मेरी उलझन के तमाशे को ज़मीं वालों की क्यूँकर आसमाँ तक बात जा पहुँची ज़माने भर में चर्चा है हमारे ख़ून-ए-नाहक़ का वहाँ तक हश्र बरपा है जहाँ तक बात जा पहूँची उन्हें ऐ 'सोज़' रुस्वाई का अपनी कब ख़याल आया निकल के गूँगे दिल से जब ज़बाँ तक बात जा पहूँची