वो तो बालीं पे भी आए नहीं बुलवाने से फ़ाएदा क्या दिल-ए-नादाँ तिरे घबराने से चाहे इक घूँट भी साक़ी न दे लेकिन रिंदो बात मयख़ाने की बाहर न हो मयख़ाने से अपनी मंज़िल पे पहुँच जाएँगे ठोकर खा के राह का'बे को भी जाती है सनम-ख़ाने से ख़ाक क्यों छानता फिरता है बयाबानों की आप ने ये भी तो पूछा नहीं दीवाने से चंद छींटों से कहीं बुझती है दहकी हुई आग और घबराने लगा दिल मेरा बहलाने से आप अब पुर्सिश-ए-अहवाल की ख़ातिर आए बात भी जब नहीं की जाती है दीवाने से मय-कशी 'सोज़' की फ़ितरत में है दाख़िल वाइज़ रिंद-मशरब है न बाज़ आएगा समझाने से