निखरना अक़्ल-ओ-ख़िरद का अगर ज़रूरी है जुनूँ की राहबरी में सफ़र ज़रूरी है हक़ीक़तों से जो होता है आश्ना ऐ दोस्त तो इस के वास्ते राह-ए-ख़तर ज़रूरी है किसी की नीची नज़र का सलाम साथ रहे सफ़र के वास्ते ज़ाद-ए-सफ़र ज़रूरी है मगर ये शर्त है हर लफ़्ज़ रूह से निकले दुअा-ए-नीम-शबी में असर ज़रूरी है दिलों का हाल न चेहरों से हो सके ज़ाहिर ख़िरद के दौर में ये भी हुनर ज़रूरी है 'उबैद' दूसरों को कर चुके बहुत तल्क़ीन अब अपने आप पे भी इक नज़र ज़रूरी है