पहले कुछ दिन मिरे ज़ख़्मों की नुमाइश होगी फिर मिरे हाल पे उस बुत की नवाज़िश होगी हाँ ब-ज़ाहिर तो धरा जाएगा क़ातिल लेकिन पस-ए-पर्दा उसी क़ातिल की सिफ़ारिश होगी प्यासी धरती यूँही प्यासी ही रहेगी यारो और दरिया पे मुसलसल यहाँ बारिश होगी जिस तरह टूटे हुए पत्ते बिखर जाते हैं हम बिखर जाएँ उसी तौर ये साज़िश होगी किस को मालूम है जो राज़-ए-मशिय्यत है 'उबैद' जाने किस बात पे किस शख़्स की बख़्शिश होगी