निकहत-ओ-नूर का समाँ होगा उस का चर्चा जहाँ-जहाँ होगा वो जहाँ भी हो आसमाँ होगा ये न पूछो कहाँ कहाँ होगा बे-ज़मीरी का राज़ अगर खोलूँ उस का चेहरा धुआँ धुआँ होगा जान-ओ-दिल से मैं चाहता हूँ जिसे मुझ से क्या वो भी बद-गुमाँ हो गा मौसम-ए-नफ़रत-ओ-तअ'स्सुब है अब तो गुलशन ये बे-निशाँ होगा क्या अभी और ज़ख़्म खाने हैं क्या अभी और इम्तिहाँ होगा ढा रहा है जो 'दाग़' ज़ुल्म-ओ-सितम एक दिन वो भी मेहरबाँ होगा