जब तलक बे-ख़ुदी नहीं होती इश्क़ में चाशनी नहीं होती कोशिशें मैं ने कीं बहुत लेकिन हादसों में कमी नहीं होती जब से छोड़ा है उस ने साथ मिरा दिल को राहत कभी नहीं होती आप चाहें तो रूठ सकते हैं हम से तो बे-रुख़ी नहीं होती हम ने जाँ तक निसार कर डाली उन को अब भी ख़ुशी नहीं होती जब न हों हुस्न-ए-यार की बातें शायरी शायरी नहीं होती पहले होती थीं बैठ कर बातें अब मुलाक़ात भी नहीं होती उन के मिलने से 'दाग़' दिल को मिरे अब तो कोई ख़ुशी नहीं होती