निकला हूँ तन-बदन का बुरादा लिए हुए लपकी है आँख आँख तमाशा लिए हुए जाने उन्हें है दस्त-शनासों ने क्या कहा फिरते हैं लोग हाथ में कासा लिए हुए सड़कों पे इन दिनों है क़यामत का इक समाँ सब जा रहे हैं ख़्वाब का लाशा लिए हुए जन्नत से इस लिए है निकाला गया तुम्हें फैलो ज़मीं पे नस्ल-ए-तवाना लिए हुए दो चार अहल-ए-ज़ौक़ मुझे मिल गए वहाँ पहुँचा जहाँ अदब का असासा लिए हुए दिलदार बाज़ुओं में समाएगा लाज़िमन घर से चलो जो पुख़्ता इरादा लिए हुए उस बेवफ़ा की बात कभी टालता नहीं आए यहाँ हो जिस का हवाला लिए हुए सुनता है 'आफ़्ताब' जहाँ इश्क़ की पुकार जाता वहीं है दिल का ख़ज़ाना लिए हुए