नींद आँखों में समो लूँ तो सियह रात कटे ये ज़मीं ओढ़ के सो लूँ तो सियह रात कटे क़तरा-ए-अश्क भी लौ देते हैं जुगनू की तरह दो घड़ी फूट के रो लूँ तो सियह रात कटे रोने-धोने से नहीं उगता ख़ुशी का सूरज क़हक़हे होंट पे बोलूँ तो सियह रात कटे आँख ना-दीदा मनाज़िर के तजस्सुस का है नाम मोतियाँ आँख में रोलूँ तो सियह रात कटे कर्ब-ए-तन्हाई मिरी रूह का करती है सिंघार ज़हर एहसास का घोलूँ तो सियह रात कटे